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My Expressions
Rules for Post Submission

माँ

मैं तो गिर ही गई थी,
तुमने संभाला है मां।
ज़िंदगी के हर मोङ,
पर हाथ है तुमने थामा।

मुझे नही है समझ,
इस बेरहम समाज की।
हर उठी उँगली से ढाला मुझे,
हर आवाज़ ललकार दी।

होती न अगर तुम,
इस जग में मेरी रक्षा हेतु,
रह जाती मैं निष्क्रिय,
हे अंबे! इस संसार में।

करती हूँ मैं धन्यवाद उस बैकुंठ के स्वामी का, बेटी बनाकर भेजा तुम्हारे आंगन में, मेरा ही भाग्य है जो तुम मेरे जैसे तुच्छ जीव को मिली, नहीं तो हम में बात ही क्या थी…..तेरे दर पर जब भी हूँ आई मुङ कर जाने न दिया निराश होकर तूने कभी भी।

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AADYA Parashar

8, VIVEK HIGH SCHOOL, Mohali, Punjab

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