हिंदुस्तान की प्रगति हिंदी से
हिंदी वतन की आत्मा हिंद की पहचान है,
हिंदी हमारा स्वर मुखर हिंदी हमारा गान है।
किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए उसकी राष्ट्रभाषा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। हमारे देश में अनेक प्रकार की भाषाएँ प्रचलित है,जिनमें हिन्दी को ही हमारी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्रदान कर देश के संविधान निर्माताओं ने बुद्धिमत्ता, निष्पक्षता एवं दुरदर्शिता का परिचय दिया है। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी हिंदुस्तानियों की राष्ट्रीय एकता का मूलाधार है। मात्र हिंदी भाषा में ही देश के शैक्षणिक ,राजनैतिक ,सामजिक ,धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यभार संचालन की पूर्ण क्षमता है ।यह सम्पूर्ण देश की संपर्क भाषा है तथा समस्त राजकीय कार्यों की भाषा है । हम सीखने के लिए चाहे जितनी भाषाएँ सीखें पर राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान होना परमावश्यक है ।
भाषाएँ जितनी सीख सको, दोस्तों उतना ही अच्छा है ,पर स्थान मातृभाषा का तो,सब भाषाओँ से ऊँचा है ।
भारतीय संस्कृति सदियों पुरानी है जिसमें हिंदी भाषा अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आज हमारी हिंदी संस्कृति को विदेशों में भी अपनाया जा रहा है। परंतु इसके विपरीत हमारी भाषा व संस्कृति का अपनी ही जन्मभूमि में महत्व कम होता जा रहा है ।आज भारतीय समाज का अधिकांश वर्ग अपनी परंपराएं पूर्णतः निभाने में असफल हो रहा है। वे अपनी ही भाषा से विमुख होते जा रहे हैं जबकि विदेशी नागरिक भारतीय संस्कृति को बड़े आदर की दृष्टि से देखने व अपनाने लगे हैं।
हमारी इस विच्छिन्न होती संस्कृति को बचाने के लिए हिंदी का तीव्र गति से प्रचार- प्रसार आवश्यक है ।इसके लिए सबसे पहला कार्य हिंदी प्रेमियों , कवियों, लेखकों और शिक्षकों को करना
है । आज का विद्यार्थी कल का नागरिक है। शिक्षकों को चाहिए की वे विद्यार्थियों को मानवीय मूल्यों , शालीनता , विनम्रता और राष्ट्रीय एकता का पाठ पढाएँ । आज समय की मांग है की मानव मन को कुसंस्कारों की अनगिनत परतों से निकालकर उसे उसके मूल स्वरुप के दर्शन कराए जाएँ । केवल आध्यात्मिकता का ज्ञान हिंदी के साहित्य से बढ़ कर कहीं मिल ही नहीं सकता । एक कहावत के अनुसार –
हिन्दी है देवों की वाणी , परम पारंगत सुखद कहानी ,
हिन्दी उतनी ही पावन है , जितना की गंगा का पानी।
हिंदुस्तान में आज भी महान आत्माएँ विद्यमान हैं । समय ही बताएगा कि हिंदुस्तान ने अपनी खोयी प्रतिभा को हिंदी के माध्यम से पुनः प्राप्त कर लिया है और वह उन राष्ट्रों को दिशानिर्देश देने का सामर्थ्य रखता है जो अशांति की राह पर शांति की खोज में भटक रहे हैं। जागो !भारत के मनीषियों,प्रबुद्ध राजनीतिज्ञों और शिक्षकों जागो । सिर्फ हिंदी साहित्य से ही देश का उत्थान संभव है।
कुछ लोगों का मत है की विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति का माध्यम हिंदी हो ही नहीं सकता पर शायद उन्हें ज्ञात नहीं कि विज्ञान तो वेदों और पुराणों में भी मौजूद था और आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण जैसे- कंप्यूटर, मोबाइल आदि हिंदी को भी सशक्त रूप में स्वीकार करने लगे हैं । यह धारणा गलत है कि
दक्षिण भारत के लोग हिंदी नहीं जानते क्योंकि उत्तर भारत की हिंदी फ़िल्में व उनके गीत दक्षिण में भी काफ़ी प्रसिद्ध होते हैं व् लोगों की जुवां पर रहते हैं।
हिन्दी तो हिन्दुस्तान के रोम-रोम में बसी हुई है –
पंजाबी तेवर में हिंदी,गुजराती जेवर में हिंदी,
राजस्थानी के घर जैसे, हो मीठे घेवर में हिंदी।
हिंदी तो अमृतवाणी है ,भाषाओं की राजधानी है ,
इस तट से उस तट तक फैली हिंदी तो बहता पानी है ।
यह हिंदी साहित्य की ही देन है कि आज भी हिंदुस्तान विश्व भर में ‘शांतिदूत’ के रूप में पहचाना जाता है। हिंदी के एक नीति- वाक्य ‘अहिंसा परमो धर्मः’ पर गांधी जी ने पूरी जिंदगी समर्पित कर दी ।
दोस्तों दूसरी भाषाओं का ज्ञान होना बुरा नहीं है वरन् हम जितनी अधिक भाषाएँ जानेंगे उतना ही अधिक हम इस संसार को जान पाएँगे। परंतु अन्य भाषाएँ हमें मात्र ज्ञान देती है संस्कृति नहीं। जितनी आत्मीयता हिंदी में है उतनी किसी अन्य भाषा में हो ही नहीं सकती।
अतः अपने देश को निरंतर प्रगति की राह पर उन्मुख रखने के लिए हमें अपनी मातृभाषा हिंदी को समस्त भाषाओं से सर्वोपरि समझना चाहिए तथा इसके विकास एवं प्रचार- प्रसार के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
तुम मुखर रहो तो हिंदी में ,तुम प्रखर रहो तो हिंदी में
उसका सिहासन अड़िग वहाँ,तुम शिखर रहो तो हिंदी में ।
हिंदी में सब काम करो, हिंदी का सम्मान करो ,
हिंदी अपने राष्ट्र की भाषा हिंदी पर अभिमान करो।
जय हिंद !
महीपाल पात्र
वरिष्ठ अध्यापक (हिंदी)
दिल्ली पब्लिक स्कूल सोनीपत
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