आपबीती
चुपके से आया, कोई घर में मेरे
ताला खोला, कुण्डी उखाड़ी,
था कोई अच्छा खिलाड़ी।
दिन – दुपहर की है बात, समय था कोई ख़ास।
जो कुछ लगा हाथ उसके, कर लिए अपने हाथ साफ उसने।
कहने को हैं इज्जतदार, काम सारे शर्मनाक,
ना आई शर्म, ना आई लाज, खाने लगा कसमें हजार।
पर क्या कर सकता है, कोई तब तक,
कानून के ठेकेदार, साथ हैं जब तक।
कहते हैं भगवान के घर, देर है अंधेर नहीं,
चोर अपना ही था, कोई गैर नहीं ।
कुत्ता आया, पुलिस आई, तमाशा हुआ खूब,
जब तक आँखों में था पानी, बहाया खूब।
पर जब तक दम में है दम, हिम्मत नहीं हारेंगे हम।
जिसने किया
है कसूर, उसे सजा मिलेगी जरूर।
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