अल्बर्ट आइंस्टीन
टी.वी. पर समाचार चल रहे थे – ‘विश्व में कोरोना से ग्रस्त लोगों की संख्या एक करोड़ तक पहुंची। चीन ने लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ की। देश के विभिन्न भागों से लाखों प्रवासी मजदूर पैदल यू.पी. बिहार जाने के लिए सड़कों पर निकले। भुखमरी और प्राकृतिक आपदाओं से बंगाल और उड़ीसा में सैकड़ों लोगों की जान गई।‘
समाचार देखते-देखते मेरी आंख लग गई। अचानक किसी झरने की कल-कल ध्वनि सुनकर मेरी आंख खुली तो मैंने अपने आप को एक अद्भुत संसार में पाया, जहां चारों ओर सुंदर फूल खिले थे। खूबसूरत तितलियां उड़ रही थीं। तभी एक देवदूत-जैसे दिखने वाले व्यक्ति ने मुझसे कहा-‘देवलोक में आपका स्वागत है।‘मैं आश्चर्यचकित थी कि तभी तीन अप्सराएं मेरे निकट आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगीं–मैं घबरा कर पीछे हटी और जोर से बोली–आप दूर ही रहिए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कीजिए, आपने मास्क भी नहीं पहने हैं। मेरी बात सुनकर वह देवदूत और अप्सराएं जोर से हंस पड़े।यह देव लोक है यहां कोई भी व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता इसलिए यहां पृथ्वी की तरह मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत नहीं है।
मैंने कहा-‘काश मैं अपनी पृथ्वी को भी ऐसा बना सकती। ‘देवदूत ने कहा तुम अपनी पृथ्वी को भी रोग और दुख से मुक्त बना सकती हो हम तुम्हारी सहायता करेंगे।‘चलिए मैं तुम्हें ऐसे महापुरुषों से मिलवाता हूं जिन्होंने तुम्हारी तरह ऐसा ही स्वप्न देखा था लेकिन जो जीते-जी ऐसा नहीं कर पाए।‘वे मुझे एक विशाल कक्ष में ले गए जहां अनेक व्यक्ति उपस्थित थे-मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं जब मैंने उन लोगों के बीच महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, अल्बर्ट आइंस्टीन अब्दुल कलाम जैसे महापुरुषों को बैठे देखा।
देवदूत ने कहा इन सभी महापुरुषों ने पृथ्वी को स्वर्ग बनाने का स्वप्न देखा था और उस स्वप्न को साकार करने का प्रयत्न किया था इसलिए इनमें से तुम किसी एक महापुरुष को अपने साथ पृथ्वी पर ले जा सकती हो ताकि वे पृथ्वी पर जाकर पुनः अपना स्वप्न साकार कर सकें। बताओ इनमें से तुम किसे ले जाना चाहोगी? देवदूत ने पूछा– ‘मैं अल्बर्ट आइंस्टीन को अपने साथ ले जाना चाहूंगी’ अचानक मेरे मुंह से निकला।
देवदूत जोर से हंसा- अल्बर्ट आइंस्टीन को ही क्यों? अपनी बात का औचित्य सिद्ध करना मेरे लिए मुश्किल था फिर भी मैंने कहा- पृथ्वी को आज एक मानवतावादी वैज्ञानिक की आवश्यकता है जो अपने वैज्ञानिक आविष्कारों का मानवता के लिए इस्तेमाल कर उसे स्वर्ग बना सके। पृथ्वी को सिर्फ शांति नहीं चाहिए उसे विकास और समृद्धि के साथ शांति चाहिए। संत महात्मा शांति तो स्थापित कर सकता है लेकिन वह शांति अस्थाई होगी। स्थाई शांति तभी स्थापित होगी जब भूख और गरीबी का इलाज होगा-यह इलाज सिर्फ और सिर्फ मानवतावादी विज्ञान ही कर सकता है। देवदूत ने प्रसन्न होकर कहा- ‘जाओ पृथ्वी तुम दोनों की प्रतीक्षा कर रही है। पृथ्वी पर पांव टिकते ही मेरा स्वप्न भंग हो गया।टी.वी. पर अभी समाचार जारी थे।
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