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हमारे निर्माता, राष्ट्रीय स्तंभ: गुरु

हमारे निर्माता, राष्ट्रीय स्तंभ: गुरु

आपने ही हर राह पर चलना सिखाया,
आपने ही जीवन की गहराइयों को समझाया,
आपसा न कोई मिला है, न मिल पाएगा,
आकांक्षा है मुझे सदा मिले आपके आदर्शों की छाया ।।

गुरु ‘गोविंद’ व ‘साक्षात परमेश्वर’ की उपमा से सुशोभित है।
‘गुरु’ हमारे इस मनुष्य रूपी जीवन का एक विशिष्ट पहलू है जो एक बालक में चरित्र निर्माण कर उसे इस योग्य बनाता है कि वह एक सामाजिक नागरिक बन राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्वों का निर्वाह कर सके । गुरु की महिमा असीम है जिसे वर्णन करना असंभव है । गुरु को एक कुम्हार की उपमा से अलंकृत किया गया है, जिस प्रकार एक कुम्हार अपने हाथ व् कौशल से मिट्टी को एक सुंदर घड़े का रूप दे देता है उसी प्रकार गुरु भी एक मासूम व कोमल बालक को अपने ज्ञान रूपी कौशल से सँवारता है और उसे समाज में रहने के योग्य बनाता है।
गुरु की छत्रछाया में प्रत्येक शिष्य का समान रूप से व बिना किसी भेदभाव के अपने व्यक्तित्व का विकास होता है गुरु के आशीर्वाद से सभी संकटों व समस्याओं का आसानी से निराकरण किया जा सकता है । गुरु के बिना ज्ञान पाना असंभव है गुरुजी ही ज्ञान का श्रेष्ठतम स्त्रोत है । गुरु के चरणों के प्रताप से भी एक सामान्य व्यक्ति एक विशिष्ठ व यशस्वी मनुष्य बन सकता है ।
भारतवर्ष को ‘गुरुओं का देश’ जैसे उपाधि से अलंकृत किया गया है । भारतवर्ष महान् व प्रसिद्ध गुरुओं की जन्मभूमि रहा है । गुरु से तात्पर्य न केवल आचार्य या शिक्षक से है अपितु गुरु तो वह ज्ञान का दीप है जो हमारे भीतर छिपी (अदृश्य ) प्रतिभा को जागृत करके हमें सुपथ की ओर अग्रसर करता है । गुरु के प्रताप से मानव ने न केवल सामाजिक, वैज्ञानिक, आर्थिक उन्नति की है वरन् उसने समस्त क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व फैलाया है । गुरुओं को साक्षात् परमेश्वर की उपमा दी गई है । गुरु का स्मरण होते ही हमारे स्मृति पटल पर चाणक्य, विरजानंद, रामकृष्ण परमहंस, विश्वामित्र, जीजाबाई व वाल्मीकि जैसे महान गुरुओं का स्मरण हो आता है जिन्होंने क्रमशः चंद्रगुप्त दयानंद विवेकानंद श्रीराम व शिवाजी जैसे यशस्वी विभूतियों का निर्माण किया।
अमानवीय गुणों यथा घृणा , ईर्ष्या, द्वेष, झूठ दंभ से युक्त इस कलयुग में आज कोई पवित्र विभूति है तो वह है सिर्फ गुरु व माता-पिता । गुरु व माता-पिता ही संसार में ऐसे व्यक्ति हैं जो सदैव चाहेंगे कि उनका पुत्र या शिष्य संसार में उनसे भी अधिक उन्नति करते हुए चरमोत्कर्ष को प्राप्त करें । संसार में गुरु के आशीर्वाद से सभी कार्यों में सफलता मिलती है और गुरु माता पिता के समान अन्य कोई प्राणी संसार में पूज्य व वंदनीय नहीं है।
गुरु के बताये गए मार्ग का अनुसरण करने से अज्ञान रूपी अंधकार ज्ञान रूपी प्रकाश में परिवर्तित हो जाता है । गुरु की निंदा या गुरु के ऊपर मिथ्या दोष लगाने के समान अन्य कोई पाप नहीं है । जिस प्रकार गुरु कृपा से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है और व्यक्ति यशस्वी बनता है उसी प्रकार गुरु के श्राप से इतना ही अपयश संसार में फैलता है तथा उसे सुख का एक क्षण भी नसीब नहीं होता उसे नर्क की प्राप्ति होती है ।
इस प्रकार गुरु सर्वत्र पूजनीय है तथा गुरु हमारे राष्ट्र रूपी महल के आधार स्तंभ है जिनका यशोगान सर्वत्र फैला हुआ है एवं जिन के गुणों का वर्णन करना असंभव है ।अतः गुरु की आवश्यकता हमें जीवन के प्रथम सोपान से अंतिम सोपान तक होती है । इस प्रकार गुरु हमारे लिए श्रद्धेय, वंदनीय है ।
हे गुरु ! गुरु तुम्हें शत शत नमन् ।

उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचेगा व्यक्तित्व हमारा,
गुरु के प्रति श्रद्धा, नमन् भक्ति की होगी जब उन्नत धारा।।

द्वारा
महीपाल पात्र
वरिष्ठ अध्यापक (हिन्दी )
दिल्ली पब्लिक स्कूल सोनीपत (हरियाणा )

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Mr Mahipal Patra

10, Delhi Public School, Sonepat

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