हिंदी हमारी अस्मिता और पहचान है
हिंदी हमारी भाषा ही नहीं वरन हमारी पहचान और विरासत है, विरासत का अर्थ है जो कुछ भी हमें अपने पूर्वजों से प्राप्त होता है ।हमारी सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज़, परम्परा हमारी जड़ें हमारी राष्ट्रभाषा ही हिंदी से ही जुड़ी हैं तो क्या आज तक कोई ऐसा वृक्ष हुआ है जो अपनी जड़ों को त्यागकर हरा-भरा रह पाया हो।कौमें विरासत में जीती हैं और हास्यास्पद है यह सोचना कि हम अपनी विरासत से अलग हैं क्योंकि वर्तमान की विरासत पर ही भविष्य का निर्धारण होता है इतिहास साक्षी है कि जो भी अपनी जड़ों ,विरासत से पृथक हुआ उसकी हस्ती शेष न रही।
आज हम कहते हैं कि हमारे बच्चे संवेदना हीन हैं तो क्या हमने विचार किया है कि ऐसा क्यों ?कौन है जो उन्हें उनकी जड़ों और संस्कारों से महरूम कर रहा है,क्या विडंबना है यह कि आज हम उस भाषा और संस्कृति का अनुसरण कर गौरान्वित अनुभव करते है जिसके प्रेमियों ने हमारे पूर्वजों की कोड़ो से खाल उधेड़ी थी और भारत माँ को लहूलुहान कर दिया था परन्तु विदेशों में आज हिंदी ही है जिसने गैर देश की सरजमीं पर भारत के गौरव को बढ़ाया है आज जिनकी संस्कृति और भाषा का हम महिमामंडन करते नहीं थकते वही लोग हिंदी सीखने के लिए उत्साहित एवं इच्छुक है अंत में दो पंक्तियों द्वारा अपनी बात कहना चाहूँगी-
मुझमें ज्योति और जीवन है
मुझमें यौवन ही यौवन है
मुझे बुझाकर देखें कोई
बुझने वाला दीप नही मैं
जो तट पर मिलजाया करती
ऐसी सस्ती सीप नही मैं
शब्द शब्द मेरा मोती है
सघन अर्थ ही मेरा धन है
मुझमें ज्योति और जीवन है।
अनीता चतुर्वेदी
अध्यापिका (हिंदी )हिंदी हमारी अस्मिता और पहचान है
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