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दीपावलि के प्रमुख ५ दिन-

आइये जानें बच्चों क्या महत्व है दिवाली के इन ५ का-

दीपावलि का प्रारंभ ‘धनतेरस’ से होता है| यह केवल धन-लक्षमी की पूजा का दिन ही नहीं, अपितु ‘रोग-नाशक’ देव ‘धन्वंतरि’ की आराधना का भी होता है|धन्वंतरि जी की पूजा कर हम उनसे अपने निरोगी होने की प्रार्थना करते हैं|

‘नरक-चौदस’ की पूजा घर की गंदगी को दूर करने के साथ ही तन-मन की विषमता (बुराई)को स्वच्छ करने हेतु की जाती है|

‘अमावस्या’ अर्थात दिवाली में निश्चित रूप से श्री ‘गणेश एवं माँ लक्षमी’ की पूजा कर हम अपने जीवन के सभी विघ्नों के नाश हेतु और अपने जीवन में वैभवशाली होने की कामना करते हैं|

‘गोवर्धन-पूजा’ दीपावलि के अगले दिन हर्षपूर्ण ढंग से मनाकर हम श्री कृष्ण जी की पूजा करते हैं| जो हमें रूढ़िवादिता से दूर रहने की बात भी सिखाते है, ईश्वर ने जिस प्रकार ‘गोवर्धन पर्वत’ को अपनी छोटी उँगली पर उठाकर बृजवासियों की रक्षा की थी, उसी प्रकार वह हम सबको हर विधि से सुरक्षित रखते हैं|

इस पर्व का अंतिम पाँचवाँ दिन ‘भाई-दूज’ के रूप में मनाया जाता है, हर बहन अपने भाई के उज्जवल भविष्य की प्रार्थना भगवान से करती है|
‘वसूधैव-कुटुंबकम’ के इच्छा से हम सबको परोपकार का भाव रखकर एक-दूसरे के सुंदर भविष्य की कामना करनी चाहिए|
विनीता शुक्ला

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VINEETA SHUKLA

10, ASHOK ACADEMY

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